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एक ख़त दामिनी के नाम

समदिया
समदिया
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प्रिय दामिनी,

मुझे पता हैं, मेरे पिछले ख़त की तरह ये ख़त भी तुम्हे नहीं मिलेगा फिर भी मैं ये ख़त लिख रहा हूँ। दामिनी मुझे पता हैं की आजकल तुम बैकुंठ में विराज स्वर्गलोक का आनंद ले रहे होंगी। लेकिन फिर भी अगर समय मिले और ये ख़त मिले तो पूरा जरुर पढना। दामिनी मुझे पता हैं अब ब्रह्मषि नारद भी मर्त्यलोक का चक्कर नहीं लगाते, भूलोक का कृत्य देखकर अब वो भी लजाने लगे हैं लेकिन फिर भी लिखे जा रहा हूँ।
दामिनी बस ये पूछना चाहता था की क्यों इस तरह रात के अँधेरे में तुम हमें छोड़कर चली गयी। क्या इतना भी नहीं सोचा की कैसे जियेगा तुम्हारा ये भाई तुम्हारे बिन। बहन मुझे पता हैं पूस की ये रात तुम्हारे लिए दुष्कर और दुसहः था तुम्हारे लिए और उससे भी दुसहः था तुम्हारा वो दर्द जो उन पापियों ने दिया था तुम्हे, लेकिन इस तरह लाखो लोगो के आशाओं पर तुषारापात कर तुम्हे विदा नहीं लेनी चाहिए।
प्रिय बहन मुझे ये भी पता हैं की तुम नहीं जीना नहीं चाहती थी इस दुष्ट संसार में, सोच रही होंगी तुम की कैसे ढोंउगी मैं अपना ये अपवित्र देह। लेकिन बहन तुम क्यों भूल गई की गंगा कभी अपवित्र नहीं होती चाहे क्यों ना बहा दी जाए उसमे दुनिया जहान की गंदगी। क्यों तुम भूल गयी थी तुम पवित्र थी आज भी उतनी ही जितना थी पहले। एकदम गंगा की तरह साफ़ और निर्मल। बहन क्या दुष्टों की दुनिया से इस तरह मुँह छिपाकर अँधेरी रात में विदा लेना कायरता नहीं हैं। क्यों नहीं रुकी तुम इस दुनिया में उस दुष्टों के संहार के लिए, क्यों भूल गयी तुम की अनाथ हो जायेगी वो सारी अबला तुम्हारे बिन जिसके अरमान जगे थे तुम्हारे मुहीम से। हाँ बहन! तुम्हे पता हैं कितना आंदोलित हुआ हैं ये देश तुम्हारे साथ हुए अन्याय पर, कितना रोया हैं, कितना दर्द हुआ हैं, लेकिन दामिनी जो भी हो तुमने झंकझोर कर रख दिया उनकी आत्मा को, जो  कल तक  लाज की गठरी और चूड़ियाँ पहने घर में बैठी थी समाज और सरकार के डर से वो अब बाहर आ रही हैं; हक़ और इन्साफ के लिए।

प्रिय बहन तुम्हे पता हैं, तुम्हारी ये शहादत बेकार नही जाने वाली, देश की दामिनी अब जाग गयी हैं। जम्मू की खबर तो तुम्हे मिल ही गयी होगी किस तरह तुम्हारी बहादुर बहन ने गुंडों के को मुंह तोड़ जवाब दिया था। अब वो सब भी मुंह छिपाकर जुल्म और अत्याचार को नहीं सहती बल्कि सीना चौड़ा कर उसका सामना करने लगी हैं और ये सब सिर्फ तुम्हारे कारण हो पाया हैं।

प्रिय दामिनी एक बात और जो मैं तुमसे पूछना चाहता था – कभी मौका मिले तो पूछना उस भगवान् से की उसे तुम्हारी दारुण पुकार क्यों नहीं सुनाई दी थी। क्या हो गया था उस समय भगवान् को देश के लाखो लोग हाथो में मोमबत्ती लिए तुम्हारी सलामती की दुवा कर रहे थे? क्या उन लाखो लोगो की दुवा भी नहीं पहुँच पायी थी उन तक, अगर हाँ तो फिर क्यों नहीं भेज किसी हनुमान को तुम्हारे पास संजीवनी लेकार। या फिर देखने और सुनने की शक्ति कम हो गयी हैं उनकी। क्या वैद्धराज भी आकस्मिक छुट्टी पर चले गए थे जो नहीं कर पाए उनका इलाज़ सही समय पर। ऐसे कुछ सवाल हैं जिसे तुम जरुर पूछना।

अंत में, प्रिय मुझे पता हैं तुम खुद नहीं रहना चाहती थी इस जालिम समाज में जो जिन्दगी के बाद भी कदम-कदम पर तुम्हे उस गलती के लिए उलाहना देते जो तुमने किया ही नहीं था। बहन बस इतना कहना चाहूँगा की ये क्रांति की मशाल जो तुमने जलाई थी उसे खतम मत होने देना, और अगले जनम अगर मनुष्य देश मिले तो मेरी बेटी बनकर आना।

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