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प्रिय मुझे गर्व हैं तुम पर

समदिया
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प्रियतम,
देखा हैं हमने सूरज के आग को, किस तरह से हो जाता हैं लाल। जब होता हैं वो अपने पुरे शबाब पर। मुझे पता हैं की नहीं हैं जलना उसकी नियति, फिर भी वो जलता रहता हैं घुट घुट कर। उसी तरह प्रिय मैंने देखा था तुम्हे कल अपने पुरे आवेश में। कैसे हो गयी थी तुम लाल सूरज की तरह जब खोया था तुमने एक अदना सा वस्तु। तुम्हारा अधेर्यापन दिखा था मुझको जब तुम हो रही थी उतावली उसे पाने के लिए। तुमने तो जैसे ख़त्म ही कर ली थी अपनी जीने की जिजीवषा उस छोटे से वस्तु  के पीछे, क्या सचमुच उतना अनमोल था वो। या अर्थ में तौलने जा रही थी तुम अपने प्यार को।

प्रिय मुझे पता हैं, बड़े अरमानो से बचाया था तुमने वो चंद कागज के टुकड़े, दिन रात एक करके, पाई-पाई जोड़कर ताकि तुम खरीद सको ‘हमारी माँ’ के लिए एक मुट्ठी ख़ुशी। लेकिन प्रिय क्या तुम भूल गई की पैसे से खुशिया नहीं खरीदी जा सकती, खरीदे जा सकते हैं कुछ बेजान सी वस्तु जिसमे नहीं होता प्यार और जो होता है क्षणभंगुर माया की तरह। लेकिन क्या तुम्हे पता हैं वो भी हुई होगी उतनी ही विकल जब तुमने सुनाया होगा अपने सपनो के अंत की दारुण कथा। उस माँ के लिए बेटी की ख़ुशी ही होगी नव वर्ष का सबसे कीमती उपहार। प्रिय मुझे याद हैं जब रोते हुए दिल को तुमने बड़ी मन्नतो से समझाया होगा की छलका ना देना आँखों से मोती की बुँदे उस माँ के सामने जो इन्तेजार में हैं पलक पाँवड़े बिछाए अपने बेटी के की वो लाएगी खुशिया और भर देगी मेरी झोली एक बार फिर से जो की ख़तम हो गयी थी उसके बेटे के अरमानो तले।

प्रिय तुम्हारा वो गमनीम चेहरा जो अन्दर ही अन्दर खुद से लड़ रहा था को देखकर अनायास ही याद आ गया मुझे उस बड़े शायर का शेर की ‘ हल्का सा तव्व्सुम लफ्ज़ ए मासूम पर लगाकर भींगी हुई पलकों को छुपाना भी एक हुनकर हैं’. प्रिय किस तरह पीया होगा तुमने आँशु के वो घुट, कैसे रोक पाया होगा तुमने अपने दर्द को, भगवान् शंकर को भी नहीं हुआ होगा उतना दर्द जब उसने पिया था हलाहल का प्याला। उस घडी कैसे रोका होगा तुमने अपने कांपते होठों को। कैसे संयत की होगी तुमने अपने चेहरे की भाव भंगिमा। कैसे भूल पाऊंगा तुम्हारे अन्दर के उस उम्दा कलाकार को  जिसने एक ही पल में दिखा दिया था अपने अभिनय का बेजोड़ प्रदर्शन।
प्रिय मुझे याद हैं माँ भाप गई थी तुम्हारे दिल की कशमकश को, समझ गयी थी की बेटी परेशान हैं, गले से लगा लिया था उन्होंने, और गोद में सिर रखकर हौले से सहलाते हुए प्यार से पूछा था  तुमसे “बेटा क्या हुआ तुझे ?” हाँ बेटा ही तो थी तुम उनके लिए, एक बेटे जैसी अपेक्षाएं और आकांक्षा ही तो पाल रखा था उन्होंने तुमसे।

प्रिय मन ही मन में रो पड़ता हूँ जब याद करता हूँ वो दृश्य, ठीक किसी चलचित्र की भांति आज भी हो जाती हैं जीवंत मेरे आँखों के सामने जब माँ के प्यार भरे शब्द सुनते ही छलक गई थी तुम्हारी आँख, वो मोतियों की बुँदे जो ना जाने कब से कैद थी तुम्हारे पलकों के बीच। और माँ के गोद में सर छुपये रोती रही थी तुम अविरल और निर्बाध। और फिर तुम्हारा वो आंशुओ से भरा चेहरा जब माँ ने लिया था अपने दोनों हाथो में और प्यार से पोछते हुए आँशु पूछा था ये सवाल “बेटा सब ठीक तो हैं”.

प्रिय अजीब अंतर्द्वंद में फस गई थी ना तुम, की कैसे बताएं माँ को की मैं ना खरीद सकी उनके खुशियों को, की खुशियों की चाभी जिस तिजोरी में बंद थी वो तिजोरी ही गम गई। की इस नादान बेटी ने चूर-चूर कर दिया उन सपनो को जिसे माँ की आँखों ने देखा था एक बेटे के रूप में तुम्हारे अन्दर।
प्रिय, तुमने हौले से अपना सर उठाते हुए सिर्फ दो शब्द कहे थे “कुछ नहीं माँ बस आज रोने का मन कर रहा था” क्योंकि तुमने  देखा लिया था चमक अपने माँ के आँखों में और जिसे नहीं होने देना चाहती थी तुम मद्धम किसी भी कीमत पर।
प्रिय तुम्हारा वो आत्मविश्वास फिर से जी उठा, उस एक शब्द ने, उन दो आँखों ने फिर से भर दिया तुम्हे जोश से और तुम चल पड़ी फिर से अपने माँ के सपनो को पूरा करने। प्रिय मुझे गर्व हैं तुम पर और संग में मेरी सुभकामना भी।
तुम्हारा
प्रिय

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