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महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह, खंड्वाला, दरभंगा पर जमींदार की हैसियत से साशन करने वाले अंतिम वंशज था। महामहोपाध्याय महेश ठाकुर ने 1576 इ0 में मुग़ल वंश के राजा अकबर से तिरहुत पर राज करने का आदेश लिया था। उसके बाद वो राजा और महाराजा से सम्बंधित होने लगे। शोत्रीय समुदाय से मैथिल समुदाय में आने के कारण उनको अपना टाइटल ठाकुर से बदल कर सिंह करना पड़ा। इस वंश के आखिरी महाराजा सर कामेश्वर सिंह ( 1907-1962) हुए। वह बिना किसी कारण के मरे हालाँकि उनकी विधवा महारानी कामसुन्दरी उर्फ़ कल्याणी देवी अभी भी जिन्दा हैं। उन्होंने किसी भी वारिस को गोद नहीं लिया।
दरभंगा किसी समय में भारत की सबसे बड़ी जमींदारी थी। इसका विस्तार 2400वर्ग मील था, जिसमे 7500 गाँव पूर्ण रूप से और 800 गाँव आंशिक रूप से जुड़े थे। इसमें 6000 से ज्यादा स्टाफ इस पुरे जमींदारी की देख-रेख के लिए थे। इस जमींदारी की रूचि व्यापार में भी थी। इनके खुद के 14 विभिन्न उत्पादों जैसे एविएशन, पब्लिशिंग, प्रिंटिंग, सुगर, कॉटन, जुट, बैंकिंग, शिपिंग, और शेयर ट्रेडिंग आदि के उधोग थे जिनसे सालाना आय 50 करोड़ आती थी।
महाराजा के वंश में सभी पढ़े लिखे समझदार और परोपकारी थे। इनके परोप्कारो के लाभार्थी में भारतीय कांग्रेस, बीएचयु, कलकत्ता विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, मिथिला विश्वविद्यालय, पटना चिकित्सा विश्वविद्यालय,एवं अस्पताल, दरभंगा विश्वविद्यालय, मुज्जफरपुर नगरपालिका, मुजफ्फरपुर न्यायालय आदि हैं। इसके अलावा सैकड़ो इंस्टिट्यूट और हज़ारो व्यक्तिगत उपकार भी इनके खाते में हैं।
महाराजाधिराज के व्यक्तिगत रूप से किये गए कार्य निम्न हैं।
चिट्ठी, चित्र, भाषण और आलेखों से महाराजाधिराज दरभंगा का व्यक्तित्व का पता चलता हैं, वह भारत के सबसे बड़े जमींदार बने साथ ही साथ वह एक बड़े उधोगपति भी थे जिनके अधिकार में चीनी, सूती, लोहा और इस्पात, विमानन, और प्रिंट मीडिया जैसे 14 से अधिक उधोग थे। दरभंगा राज 2500 वर्ग मील में फैला था जिसमे 4595 गाँव थे जो बिहार और बंगाल के 18 सर्किल में फैला हुआ था। 7500 से अधिक अधिकारी इनके राजकाज को सँभालते थे, जबकि 12000 से अधिक गाँवों में इनके शेयर थे।
महाराजाधिराज ना केवल सिर्फ एक बड़े जमींदार और उधोगपति थे बल्कि मिथिला के शिक्षा और विकास के लिए एक उपयुक्त व्यक्ति भी थे। एक हाथ से जहाँ उन्होंने शिक्षा के लिए कलकत्ता विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, बिहार विश्वविद्यालय, और कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, मिथिला रिसर्च इंस्टिट्यूट दरभंगा के निर्माण में बहुत बड़ी राशि दान की वहीँ राजनैतिक पार्टियों जैसे कांग्रेस पिछड़े वर्ग के नेता तथा स्वयमसेवी संस्था जैसे YMCA और YWCA के बराबर और वृहत दान दिए। एक तरफ जहाँ उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में वायुसेना को तीन लड़ाकू विमान दिए थे वही दूसरी तरफ उन्होंने सिख और हिन्दू सैनिको को 5-5 हज़ार रूपये त्यौहार मनाने के लिए दिए थे। साथ ही साथ 50 एम्बुलेस सेना के मेडिकल टीम को दिया था। जीवन के हरेक डगर में वो हरेक का साथ देते थे। उनके द्वारा लाभार्थी व्यक्तियों में डा0 राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबूल कलाम आजाद, सुभाष चन्द्र बोस, महत्मा गाँधी, महाराजा ऑफ़ जयपुर, रामपुर के नवाब, और दक्षिण अफ्रीका के स्वामी दयाल सन्यासी शामिल हैं।
स्वतंत्रा सेनानी और बिहार विधान सभा के सदस्य जानकी नंदन सिंह कहते हैं की एक बार जब महत्मा गाँधी, मालवीय जी और डा0 राजेंद्र प्रसाद जी के साथ दान लेने के लिए दरभंगा आये तो उन्होंने महाराजाधिराज से एक लाख रूपये दान की अपेक्षा की थी, लेकिन उस समय वो हतप्रभ रह गए जब उन्हें सात लाख का चेक मिला। वो लोग भी महाराजाधिराज के दान देने के प्रवृति के कायल हो गए।
वह एक अच्छे राजनेता भी थे वो दो 1931 और 1934 में राज्य-परिषद् के सदस्य चुने गए। साथ ही एक बड़े अंतर से 1937 में परिषद् के सदस्य चुने गए। वे संविधान सभा, कुछ समय के लिए राज्य सभा और उसके बाद 1962 में अपनी मृत्यु तक राज्य सभा के सदस्य बने।
महराजधिराज के बारे में कुछ रोचक तथ्य :-
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