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मैं, तुम, और वो – एक प्रेम कहानी

समदिया
समदिया
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दोस्तों नमस्कार आज मैं आप लोगो के सामने एक  प्रेम कहानी रखने जा रहा हूँ। अब जैसा की लाजिमी हैं कहानी प्रेम की हैं तो एक लड़का और लड़की तो होगी ही, तो पहले हम क्यों ना पात्र  परिचय करवा दें। इस कहानी में दो लोग हैं एक हैं “मैं” और एक  “तुम”, चलो मान लेते हैं की, ‘मैं’ जो हैं वो एक लड़का हैं और ‘तुम’ जो हैं वो एक लड़की हैं।

पात्र परिचय -:

मैं -: ‘मैं’ एक मैंगो मेन  हैं, जो किताबे पढता हैं, कहानी लिखता हैं, घंटो अकेले बात करता हैं, अपने आप में खोये हुए हर वक्त कुछ सोचता रहता हैं। कभी खुद से बाते करता हैं, कभी खुद से शिकायत करता हैं, जो यमुना किनारे बैठा रहता हैं;घंटो अकेले, कभी भीड़ में खो जाता हैं पुराने सूटकेस की तरह, कभी भीड़ से अलग दीखता हैं नए गिटार की तरह, एक ओल्ड फैशन लड़का जो गुरुदत्त को देखता हैं और गुलाम नवी को सुनता हैं। ध्रुपद और धमार भी जिसे बहुत पसंद हैं। जो मूंगफली खाता हैं, और दूध पीता हैं। साफ़ शब्दों में कहे तो “मैं” एक मैंगो मेन  हैं यानी आम आदमी।

तुम -: ‘तुम’ एक महत्वाकांक्षी लड़की हैं, जो नए फैशन की हैं, जिसे शॉपिंग पसंद हैं, नए कपडे और ज्वेलरी जिसे खुद से भी ज्यादा प्यारे हैं। जो हिरोइनों  की नक़ल करना चाहती हैं। जो ब्रिटनी और शकीरा से भी आगे निकलना चाहती हैं। जिसे सिर्फ इस मतलब हैं की वो क्या हैं, लोग उसे किस नजरो से देख रहा हैं। वो सुन्दर दिखना चाहती हैं और सुन्दर। शायद अपने आप से भी। उसे नए ज़माने की चीज़े पसंद हैं, आइसक्रीम, पिज़्ज़ा, बर्गर, और हॉटडॉग उसे बहुत पसंद हैं। पता नहीं लेकिन कभी कभी वो वोडका भी पी लेती हैं। फुल टू  नए ज़माने की जिसे सिर्फ और फैशन पसंद हैं। कोस्टा की कॉफी, डोमिनोज का पिज़्ज़ा उसके प्रिय हैं। चलने की लचक, और बोलने की अदा सब अलग हैं उसकी, एकदम अलग।

वो -: वो सिर्फ एक छलावा हैं, एक ऐसा छलावा जिसने “मैं” और “तुम” की जिन्दगी में वो तूफ़ान ला दिया जिसकी उसने अपेक्षा भी नहीं की थी।

प्रेम कहानी -: इस प्रेम कहानी में पुराने ज़माने की तरह कोई राजा या रानी नहीं हैं, ना ही शिरी और फरहाद की तरह कोई पहाड़ तोड़कर नदी ला रहा हैं। ये कहानी हैं बस एक ऑफिस के दो लोगो की जो एक दुसरे के संग रहते रहते पता नहीं कब प्यार कर बैठे। ये घटना हैं 2 दिसंबर 2010 की हैं, आम आदमी ने अपने पुराने ऑफिस को छोड़कर एक नए ऑफिस को ज्वाइन किया। नए लोग नया काम। नए संगी साथी। पुराने सब छुट गए, बढ़ते वक्त के साथ। ‘मैं’ को नया काम मिला, दो नए प्रोजेक्ट, दो नए प्रोसेस, सोचा चलो काम में इतना मशगुल हो जाऊंगा की पुराने दोस्तों की याद नहीं सताएगी, लेकिन मैं गलत था, कहने को तो दो प्रोसेस थे लेकिन काम कुछ भी नहीं। पूरा दिन खाली बैठना पड़ता था। उसके कुछ दिनों बाद “मैं” के सामने वाली प्रोसेस में एक लड़की आई “तुम” जैसा की पहले ही लिख चूका हूँ, तुम बिलकुल वैसी ही थी। संयोगवश दोनों साथ ही में बैठते थे। नया ऑफिस दोनों के लिए नया था। और दोनों नए एक दुसरे के दोस्त बन गए। और ये दोस्ती पता नहीं कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला ना ‘तुम’ और ना हीं ‘मैं’ को। दोनों एक दुसरे को टूट कर चाहने लगे….रुकिए शायद मैं गलत था, टूटकर तो सिर्फ “मैं” चाहता था। तुम के लिए तो ये प्यार सिर्फ खेल था एक ऐसा खेल जो दिलो के संग खेला जाता हो। हम साथ में ऑफिस जाने और साथ में ऑफिस से आने लगे। कुछ दिनों बाद हम दोनों ने एक दुसरे को प्रपोज कर दिया। दिन था 11 दिसंबर। प्यार का इज़हार रविवार के दिन हुआ था वो भी सन्देश में हम दोनों दूर थे एक दुसरे से बहुत दूर। लेकिन कहते हैं न प्रेम किसी स्थान विशेष में नहीं बांध सकता, ठीक यही हुआ हमारे साथ। एक दुसरे से बहुत दूर होते हुए भी एक दुसरे के हो गए। फिर हम साथ साथ ऑफिस जाने लगे आने लगे, एक दुसरे के संग टाइम स्पेंड करने लगे, बड़े अच्छे  दिन थे कमबख्त, बड़े अच्छे  दिन थे। लेकिन कहते हैं ना अच्छे दिन ज्यादा दिन तक नहीं चलते, कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ अचानक से मेरे प्यार को नज़र लग गई, कोई और आ गया शायद उसकी जिन्दगी में, या पता नहीं क्या हो गया, वो अचानक से एक दुसरे लड़के की तारीफे करने लगे, वो होता तो ऐसा करता, वो होता तो वैसा करता, उसे मेरी बहुत फिकर रहती थी। वो मेरे कहे बिना ही मेरी जरूरते समझ जाता था वगैरह-वगैरह… ! फिर तो हमदोनो के बीच “हम” कम और वो ज्यादा रहने लगा। उसे ये पसंद हैं, वो रहता तो मेरे लिए ये लाता, उसे और मुझे लाल और काला रंग पसंद हैं वगैरह-वगैरह। फिर क्या किसी भी मैंगो मेन को ये बुरा लगेगा की उसके रहते उसकी प्रेमिका किसी और के गुण गाये। “मैं” को भी बहुत बुरा लगा, वो भी एक मैंगो मेन था उसके पास भी एक दिल था जो सिर्फ उसके लिए धडकता था।  एक दिन 17 मार्च’2011 को उसने एक लड़के के बारे में बताया एक लड़का था मेरी जिन्दगी में नाम उसका “वो” हैं। “वो” मुझे बहुत प्यार करता था, वो मेरा ख्याल रखता था, वो ऐसा ,हैं वो वैसा है……

“मैं” को बुरा तो लगा लेकिन उसने सोचा की क्यों न वो “वो” से ज्यादा प्यार “तुम” को करने लगे ताकि वो “वो” को भूल सके। उसने उसे और प्यार करना शुरू कर दिया। तुम के लिए “मैं” ने अपने पुराने दोस्तों को छोड़ दिया नए ऑफिस में जो उसके दोस्त बने थे उससे किनारा कर लिया। “मैं” को यह भी पसंद नहीं था की “मैं” ऑफिस में किसी और लड़की से बात करे जबकि वो सारी लड़कियां उसे भाई बोलती थी। फिर भी “तुम” की ख़ुशी के लिए मैं ने वो सब छोड़ दिया। अपने दोस्त, अपने, रिश्तेदार, अपने घर और यहाँ तक की खुद को भी। “मैं” को लगा की हो सकता हैं की उसके प्यार में ही कोई कमी हैं। उसे ही बदलना चाहिए उसे ही कुछ ऐसा करना चाहिए की “तुम” सिर्फ उसकी बन कर रह जाए। लेकिन “मैं” को क्या पता था की “तुम” के मन में क्या चल रहा हैं। और एक दिन आखिरकार वो दिन भी आया जब “मैं” के सारे अरमान टूट-टूट कर बिखर गए। एक झटके में उसने अपने प्यार का महल गिरा दिया। एक शब्द ने उस सारी दुनिया में आग लगा दिया जिसके सपने वो सजा कर बैठा था। उसने अपने पुराने दोस्त से ‘पैच-अप’ कर लिया हैं। वो अब वापस लौट आया हैं और मुझे कभी ना छोड़कर जाने के साथ पहले से भी ज्यादा प्यार करने का वादा किया हैं। मैं जा रही हूँ। और इसी शब्द के साथ “तुम” चली गई। “मैं” की सपने की दुनिया चूर-चूर हो गयी। वो एक शब्द “मैं जा रही हूँ” तुम के कानो में पिघले शीशे की तरह बन कर गिरा। मैं टूट चूका था, हद से ज्यादा, अपने आप से, खुद से, और दुनिया से। उसे बेगानी लग रही थी ये प्यार मोहब्बत की बाते, ये इश्क का नाम, नफरत हो गयी थी उसे खुद से और दुनिया से। फिर जैसा की हरेक प्रेम कहानी में होता हैं, मजनू वाला हाल हो गया “मैं” का, ना किसी से ज्यादा बोलना, ना कुछ सुनना, सिर्फ खुद में रहना और खुद की सुनना… लेकिन कहते हैं न भगवान् जब एक रास्ता बंद करता हैं तो दूसरा खोल देता हैं, ठीक ऐसा ही हुआ “मैं” के साथ उसने कलम उठा ली, और उकेर दी अपने दिल के जज्बात कोरे कागज़ पर, पाट दिया अपने अरमानो को काले, नीले कलम से, डूब गया वो लेखन और कविता में। कहते हैं ना इश्क में सब शायर बन जाते हैं, लेकिन “मैं” इश्क के बाद शायर बन गया। कई कहानियाँ  और कई आलेख लिख डाले, कुछ तो अच्छे  अखबारों में प्रकाशित भी हो गए, और इस तरह से मशगुल हो गया वो अपनी दुनिया में की भूल गया अपनी पिछली जिन्दगी। पुनर्जनम लिया जैसे उसने और अपने जज्बातों को कागज़ पर सज़ा कर खुश हो गया। और इसी तरह ख़तम हो गई “मैं” की प्रेम कहानी।

“मैं” और “तुम” आपके हर घर हर शहर में हैं, हर गली नुक्कड़ पे आपको एक “मैं” और “तुम” दिखाई पड़  जाएंगे, जो किसी “वो” के इन्तजार में होंगे। “वो” आज भी हैं हमारे बीच ही जो “तुम” को “मैं” से छीन ले रहा हैं। अगर आपके साथ भी कुछ ऐसा ही लग रहा हैं तो सावधान हो जाइए , क्योंकि “वो” जब आता हैं तो “मैं” की कोई अहमियत नहीं रह जाती। “मैं” बेचारा अकेला सा सिर्फ कहानी ही लिखता रह जाता हैं, और “तुम” आज भी “वो” के साथ अपने जिन्दगी के हसीन सपने देखने में व्यस्त हो जाती हैं। लेकिन क्या पता अगला नंबर उस “वो” का हो जो “तुम” के लिए अपने आप को “मैं” समझ रहा हो। क्या पता उस “वो” के लिए भी कोई दुसरा “वो” तैयार हो रहा हो। जरा सोचिये….?

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