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भारत का पर्यटन मंत्रालय बिहार के पर्यटन विभाग को शायद अपनी सूचियों से बाहर ही मानता हैं। ऐसा लगता हैं जैसे बिहार भारत का अंग हो ही नहीं। एक तरफ बिहार भारत के नक़्शे पर दिल की जगह हैं, जिसके बिना सम्पूर्ण भारत का अस्तित्व ही नहीं हैं, दूसरी तरफ भारत बिहार से इस प्रकार व्यवहार कर रही हैं, जैसे ये इस देश से अलग हैं। इसकी ताजातरीन बानगी ये हैं की…
केंद्रीय पर्यटन विभाग कनाडा और अमेरिका में एक रोड शो का आयोजन कर रहा हैं। दोनों देशो ने १२ सितम्बर को भारतीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक सप्ताह का रोड-शो आयोजित कर रहा हैं। इसमें शामिल होने के लिए केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने बिहार को छोड़कर सभी राज्य को निमत्रण दिया हैं। वैसे भारतीय पर्यटन विभाग का ये पक्षपात रवैया बिहार के लिए शुरू से ही बना हैं। एक तरफ प्राचीन दरभंगा खंडहर बनने की कगार पर हैं, वहीँ तिलकामांझी विश्वविद्यालय पर्यटकों की सूची से ही गायब हैं।
रवैया ये हैं की टूरिस्म की वेबसाईट के टॉप-टेन जगहों में से बिहार गायब ही हो गया हैं। जबकि बोधगया और राजगीर अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर २३% से ज्यादा पर्यटकों को अपने और आकर्षित करता हैं। वेबसाईट का हाल यह हैं की इसके ट्रेवल डाइरेक्ट्री में बिहार के एक भी होटल का नाम सर्च नहीं होता, वही जब आप विहार राज्य सर्च करेंगे तो सिर्फ इनके पाँच शहर बाँका, बोधगया, पटना, राजगीर, सिकंदरा और वैशाली का नाम ही आता हैं। यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में आये नालंदा को इसमें शामिल करना इनकी शान के खिलाफ हैं। बाँका और सिकंदरा का नाम तो इन्हें याद रहा लेकिन महलों का शहर दरभंगा और सिल्क सिटी भागलपुर इससे कोषो दूर हैं। बिहार पर्यटन विभाग के एक आंकड़े पर नज़र डाले तो बिहार पर्यटन में इस वर्ष १०% का विकास हुआ हैं। २०११ के सर्वे के अनुसार २०११-१२ में कुल १.२७ करोड़ पर्यटक आये हैं, जिसमे ५.२७ लाख पर्यटक सिर्फ बुद्ध सर्किट के लिए आये हैं। आलम ये हैं की गत वर्ष बिहार में गोवा से ज्यादा पर्यटक आये थे।
एक तरफ बिहार में विकाश की गूंज देश-विदेश में सुनाई दे रहा हैं, वहीँ भारत सरकार का ये उपेक्षापूर्ण व्यवहार से कही ऐसा न हो की बिहार का पर्यटन अंतरराष्ट्रीय
मानचित्र से गायब ही न हो जाए।
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