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शांता तुम बहुत याद आओगी.

समदिया
समदिया
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इतिहास हैं गवाह
एक बेटी थी दशरथ की
जो राम से भी बड़ी थी
बहुत बड़ी,
नाम था शांता
कहते हैं जब वो पैदा हुई थी
अयोध्या की धरती पर
वहां पड़ा था भयंकर अकाल
पुरे बारह वर्षो तक
धरती धुल हो गयी थी.
पानी की एक एक बूंद को
तरस गया था पूरा राज,
पंछी भी छोड़ चुके थे अपने
घोसले को..
और प्रजा कर रही थी त्राहिमाम
दुखी राजा को सलाह दी गयी
उनकी पुत्री ही हैं अकाल का कारण
जब से वो आई हैं
ये हाहाकार लाई हैं
खुली राजा की आँख
राज मोह में भूल गए
पिता का धर्म
बेटी को दान में दे दिया
शृंगी ऋषि को
उसके बाद, कहते हैं
कभी शांता ने मुड़ कर नहीं देखा
अयोध्या को एक बार भी
दशरथ भी डरते थे
उसे बुलाने से
फिर बहुत दिनों तक सुना रहा अवध का आँगन
फिर उसी शान्‍ता के पति शृंगी ऋषि ने
दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ कराया…
दशरथ चार पुत्रों के पिता बन गये…
सं‍तति का अकाल मिट गया…
पुत्र मोह में इस कदर रम गए दशरथ
की फिर ना याद आ सकी शांता
फिर समय का पहिया घुमा
राम हुए बड़े
अपने चारो भाइयो के संग,
राह देखती रही शांता
की आयेंगे
मेरे भाई
लेकिन उनकी आँखे पथरा गयी
राम ने एक बार भी नहीं ली उसकी
खोज-खबर
जबकि कहने को वो थे
मर्यादा पुरषोत्तम ..
शायद वो भी डरते थे
राम राज्य में अकाल पड़ने से
कहते हैं
वन में जाते समय, वो गुजरे थे
शृंगी ऋषि के आश्रम से होकर
लेकिन नहीं पूछा एक बार भी शांता का हाल
शांता जब तक जिन्दा रही
देखती रही आपने भाइयो की बाट
की कभी तो आयेंगे
भरत – सत्रुधन,
राम – लक्षमण
अकेले आने को राजी नहीं थी वो
बचपन में सुन चुकी थी
सती की कहानी
दशरथ से.
जिसने सिखाया था
किस कदर बेटियों को सहना पड़ता हैं
बेटी और सती का संताप
किस तरह देती हैं लड़की बलिदान
कभी बेटी, कभी पत्नी, कभी माँ,
और कभी सती के रूप में

आज जब आया हैं राखी का त्यौहार
शांता तू बहुत याद आई हैं
की क्यों ना मिला तुझे भाइयो का प्यार
क्यों ना मनाया तुमने राखी का त्यौहार
क्यों तुम्हे दान दे दिया गया था
एक निर्जीव जान समझ कर
कैसे एक भाई बन गया
मर्यादा पुरुषोत्तम
जबकि बहन की मर्यादा वो निभा न सके
शांता………!!!!!!!!!!!!
जब जब भाई-बहन की बात आएगी
शांता तू बहुत  याद आएगी.

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