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विशेष राज्य की मांग और विकल्प की तलाश

समदिया
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बिहार के विशेष राज्य के दर्जे की मांग खारिज हो चुकी हैं, होना भी चाहिए आखिर कार केंद्र सरकार ११ राज्यों को पहले से यह दर्जा देकर त्रस्त हैं, अब एक और राज्य को यह दर्जा देकर अपने ऊपर बोझ नहीं बनाना चाहती थी। वैसे भी केंद्र सरकार की नज़र में बिहार एक बोझ ही हैं जो विकास के दर में तो पिछड़ा हैं ही, गाहे बगाहे विशेष राज्य की मांग उठाकर केंद्र सरकार के लिए सरदर्द अलग से बना हुआ हैं
वैसे केंद्र ने जिन तीन कारणों के कारणों बिहार को को इस सूचि से अलग कर दिया उस पर एक बार फिर से गौर फरमाने की जरुरत हैं


क्या हैं विशेष राज्य के दर्जे की मांग -:
१) पर्वतीय और दुर्गम भू-भाग
२) कम जनसँख्या घनत्व या बड़ी संख्या में जनजातीय आबादी
३) सामरिक रूप से पडोसी देशो से लगी सीमाओं पर अवस्थिति
४) आर्थिक और ढांचागत पिछड़ापन
५) वित्तीय संसाधनों का आभाव

केंद्र सरकार ने जिन तीन कारणों को बताया हैं उसके अनुसार हमारे पास दुर्गम और पर्वतीय भू भाग नहीं हैं ; माना की हमारे पास दुर्गम और पर्वतीय भू भाग नहीं हैं, लेकिन उनका क्या जो बाढ़ की चपेट में हरेक साल अपने परिवार में से एक को खो देता हैं। उनका क्या जो मेहनत से उगाई फसल को उस जल-प्लावन में स्वः होते देखता हैं
केंद्र सरकार ने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया की बिहार के वित्तीय संसाधनों की कमी नहीं हैं, और ये भी सच हैं की ग्यारहवी पंचवर्षीय योजना के बाद राज्य की वित्तीय अर्थव्यवस्था सुधरी हुई हैं
, लेकिन क्या केंद्र ने उस अर्थ-व्यवस्था पर एक बार भी नज़र नहीं दौड़ाया जो हरेक साल भुखमरी और कुपोषण का शिकार हो रही हैं
हमारे पास जनसँख्या घनत्व भी कम नहीं हैं और ना ही ये जनजातीय बहुत इलाका हैं, लेकिन उन्हें इस भारी जनसँख्या के बीच खड़े वो भूखे नौनिहाल नज़र नहीं आते हैं जो आज भी आस लगाये हैं की उनके पापा सुदूर प्रदेश से कमाकर उनके लिए मुट्ठी भर अनाज का इंतजाम कर सके, उन्हें वो गरीब किसान नज़र नहीं आता जो अपनी कड़ी फसल सिर्फ इसलिए नहीं काट पाता की उसके पास संसाधनों का आभाव हैं, वो पलायन के शिकार लोग नज़र नहीं आते जो आज भी दिल्ली मुंबई में बिहारीपन के शिकार हो रहे हैं, जिन्हें आज भी सिर्फ इसलिए पीटा जाता हैं की क्योंकि वो बिहारी हैं और अप्रवाशी हैं

वैसे केंद्र सरकार ने ने यह यह पता लगाने के लिए की बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों दिया जाय, की जांच के लिए एक अच्छी रकम खर्च की और एक अंतरमत्रलयी समूह का गठन किया, इस समूह ने अपनी आठ महीनो की मशक्कत के बाद केंद्र को जो रिपोर्ट दी वो कुछ यूँ था ” विकाश के मामले में बिहार काफी पिछड़ा हैं, बिहार का मानव विकाश सूचकांक निन्म्तम में से एक हैं
।…….  ढांचागत सुविधाओं खासकर बिजली और, सडको का आभाव, बिहार के विकाश में खासकर निजी निवेश के अनुकूल माहौल बनाने में बाधक हैं।” इन सबके बावजूद केंद्र सरकार ने इस मांग को एक सिरे से ख़ारिज कर दिया, उनके अनुसार अगर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिया तो झारखण्ड, उड़ीसा और राजस्थान जैसे राज्यों से भी यह मांग उठने लगेगी। इन सबको देखने के बाद तो ऐसा लगता हैं की बिहार को विशेष राज्य का दर्जा सिर्फ इसके पूरक कारको की वजह से नहीं मिला बल्कि कही न कही ये वजह भी केंद्र सरकार को सता रही थी की और राज्य भी मांग ना उठाने लगे, वैसे केंद्र सरकार के इस फैसले ने शायद उनका मुंह भी अपरोक्ष रूप से बंद कर दिया हैं
आजादी के बाद से ही गुजरात, महाराष्ट्र जैसे समृद्ध राज्यों के मुकाबले बिहार को हमसे से कम संसाधन मिलता आ रहा हैं, और हमारा पिछड़ा होने का मुख्या कारण ये भी हैं, अच्छा तो यह हो की किसी राज्य को विशेष रियायत की जरुरत ही ना पड़े और अगर हो तो उसमे भेदभाव ही ना हो

मेरा कहना ये नहीं है की बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दो, ना ही ये कहना हैं की बिना विशेष राज्य का दर्जा मिले बिहार में विकाश होगा ही नहीं, मेरा तो बस ये कहना ही की विकल्पों को तो नज़रअंदाज मत करो
। केंद्र के बिहार के विशेष राज्य के दर्जे की मांग को ख़ारिज करना उतना आपत्तिजनक नहीं लगा जितना की उसके लिए कोई विकल्प ना सुझाना। वैसे योजना आयोग और वित्त मंत्रालय की सयुंक्त समिति ने ये सिफारिश भी की हैं की इन्हें विशेष राज्य का दर्जा मत दो लेकिन अतिरिक्त केंद्रीय सहायता तो मिलनी ही चाहिए, लेकिन केंद्र ने इस और भी कोई ध्यान नहीं दिया जो की बड़ा ही दुखद है


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