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तो भला अच्छा क्यों ना लगे…

समदिया
समदिया
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जहाँ पलायन अभिशाप बना हो और बिहारी शब्द गाली बनकर रह गया हो वहीँ कोई नवीन चन्द्र गुलाम और कमला प्रसाद बिसेसर विदेश में प्रधानमंत्री के पद पर आ जाए.

जब पॉप और रैप में सारी दुनिया डूबी हो और धूम धड़ाका संगीत की पहचान हो गयी हो वही कोई विदुर मल्लिक ध्रुपद के क्षेत्र में पुरे विश्व में झंडे गाड़ दे और अगले ६० वर्षो तक उसका परिवार यह झंडा गिरने ना दे.

जब आधे से ज्यादा औरत अपने आँगन की दहलीज को पार ना कर सकी हो और औरत आज भी सिर्फ लाज का प्रतिरूप बनकर रह गयी हो, वहीँ कोई अरुणा मिश्रा विश्व विमेन बोक्सिंग चैम्पियनशीप में एक झटके से स्वर्ण पदक ले आये.

जहाँ आधा से ज्यादा बच्चे स्कूल का मुंह तक ना देख सके हो और ४३% से ज्यादा लोग पहली कक्षा में ही स्कूल ड्रॉपआउट कर दे और वहीँ कोई संजय झा और सतीश झा सीईओ के पद पर विराजमान हो जाए.

जब तीन चौथाई से भी ज्यादा हिस्सा हरेक साल बाढ़ और सूखे की चपेट में आता हो वही कोई युवा किसान सुमंत एक हेक्टेयर में २५४ क्विंटल धान उत्पादन करके चीनी वैज्ञानिक युआन लोंगपिंग को भी पीछे छोड़ दे.

जब क्रिकेट किट के लिए पैसे ना हो और ताड़ के डंडे से बैटिंग करके कोई कीर्ति आजाद, सौरभ तिवारी और कविता राय विश्व क्रिकेट में झंडे गाड़ दे. जब इंजीनयिरिंग में एडमिशन सिर्फ पैसे वालों हक़ बन जाए और कोई आनंद गरीबो के लिए इसे सुलभ बना दे.

जब राजनीति सिर्फ सियासी गलियारों की गुलाम बनकर रह जाए और विकाश सिर्फ नेताओं की जेब तक दिखे वहीँ कोई इंजिनियर मुख्यमंत्री बनकर विकास पुरुष बन जाए

तो भला अच्छा क्यों ना लगे…

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