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चलों मीत अब लौट चलों…

समदिया
समदिया
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चलों मीत अब लौट चलों
बूढ़े बरगद की बाँहों में,
पीपल  की ठंढी छाओं में
उस दिलवालों के गाँवों में।।

जहाँ प्रेम की झरना बहती हो
और लोग दीवाने होते  हो,
हर घर में होली मनती हो
और रोज दिवाली जलती हो।।

जहाँ राम-रहीम की मार नहीं
गीता-कुरान हर घर में हो,
मंदिर-मस्जिद के बेडी में
जहाँ लोग ना खुद को जकड़े हो।।

जहाँ मेहमानों के स्वागत में
लोगों के दिल बिछ जाते हो,
एकदूजे के सुख-दुःख में भी
सब मिल के हाथ बटाते हो।।

जहाँ मानवता सबसे पहले
और बाद में जाती आती हो,
उस रामराज्य की और चलो
चलो मीत अब लौट चलो…।।

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